हिंदी कविता मात्र भाषा हिंदी पर
हिंदी हम तुझसे शर्मिंदा हैं
आज कल ओझल हो गयी है हिंदी एसे
महिलाओं के माथे से बिंदी जैसे
कभी जो थोड़ा बहुत कह सुन लेते थे लोग
अब उनकी शान में दाग हो हिंदी जैसे
लगा है चसका जब से लोगों अंगरेजियत अपनाने का
अपने संस्कारों को दे दी हो तिलांजलि जैसे
अब तो हाय बाय के पीछे हिंदी मुँह छिपाती है
मात्र भाषा हो के भी लज्जित हो रही हो जैसे
है गौरव हमें बहुत आज एक शक्तिशाली देश होने का
पर अपनी पहचान हिंदी को हमने भूला दिया हो जैसे
आज हिंदी दिवस पर हमें हिंदी याद आयी एसे
हमारे पूर्वजों को दे रहे हो श्रद्धांजलि जैसे
आज कल ओझल हो गयी है हिंदी एसे…
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”
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