जीवन पर आधारित कविता
शीर्षक -: जैसे कुछ हुआ ही नहीं
आज कल मैं यूं जी रहा हूँ
जैसे कुछ हुआ ही नहीं,
बीते लम्हें दफना दिए हैं
जैसे कुछ गुज़रा ही नहीं
हालातों की कैंची ऐसी चली
के ख्वाब सारे उधड गए,
पोटली बना ली थी कतरनों की
जोड़ लग के भी कुछ पूरा हुआ ही नहीं
मुख़्तसर सी जिंदगी भी
अब मुख़्तसर लगती नहीं
कोई वजह तो होगी जीने की
क्योंकि बेवज़ह कुछ भी अच्छा लगता नहीं
रिश्तों का एक घना पेड़ था
जो अपने बोझ से ढह गया,
सूखे पत्ते ही हाथ लगे
क्योंकि उसपे कुछ फला ही नहीं
उम्मीद पे दुनिया कायम है
इसी इंतजार में दिन कट रहे हैं,
शम्में जला दी हैं राहों में
क्योंकि मायूसियों में उम्मीद का रास्ता मिलता नहीं
आज कल मैं यूं जी रहा हूँ
जैसे कुछ हुआ ही नहीं,
अर्चना कि रचना ” सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास “
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