Main Badnam- Hindi poetry on human nature

by | Dec 10, 2019 | LIFE, NATURE, SATIRE, SENTIMENTS | 0 comments

मानव स्वभाव पर हिंदी कविता

 मैं  बदनाम

ऐसा क्या है जो तुम मुझसे
कहने में  डरते हो
पर मेरे पीछे मेरी बातें करते हो
मैं जो कह दूँ कुछ तुमसे
तुम उसमें तीन से पांच
गढ़ते हो
और उसे चटकारे ले कर
दूसरों से साँझा  करते हो

मैं तो हूँ खुली किताब
बेहद हिम्मती और बेबाक़
रोज़ आईने में नज़र
मिलाता  हूँ अपने भीतर झाँक, फिर
 ऐसा क्या है जो तुम मुझसे
स्वयं पूछने में डरते हो ?

एक लम्बा सफर तय किया है मैंने
जहाँ भी आज मैं पहुंचा हूँ
गिरा संभाला पर अपना
स्वाभिमान बनाये रखा हूँ
 मेरे जूते पहन के ही तुम
उसके काटने की चुभन समझ
सकते हो

वो जीवन  ही क्या जिसमें
सुनाने को कोई कहानी न हो
जिनमें गलतियों से सीखने का
कोई सबक न हो
पर वो कहानी मैं तुम्हें सुनाऊँ
क्या इतनी समझदारी तुम रखते हो ?

मेरे जीवन में कई उलझनें हैं
जो शायद सुलझाने से भी
न सुलझेगी
पर उनके बारे में न सोचते हुए
तुम अपने काम से काम
क्यों नहीं रखते हो ?

डंके की चोट पे करता
हूँ हर काम
किशोर दा का गाना
बहुत आता है मेरे काम
” कुछ तोह लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना “
यही गाना सुनते हुए अब
इस लेखनी को  देता  हूँ विश्राम

मुझे क्या तुम सोचते रहो
और मेरी बातें करते रहो
क्योंकि “बदनाम” होने में भी
है बहुत नाम

अर्चना की रचना  “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”  

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