ग्लोबल वार्मिंग / जल संकट / प्रकृति पर हिंदी कविता
मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर
मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना
हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर
जब मैं निकली श्री शिव की जटाओं से ,
मैं थी धवल, मैं थी निश्चल
मुझे माना तुमने अति पवित्र
मैं खलखल बहती जा रही थी
तुम लोगों के पापों को धोती जा रही थी
पर तुमने मेरा सम्मान न बनाये रक्खा
और मुझे कर दिया अति अपवित्र
इस पीड़ा से मेरा ह्रदय गया है चीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर
मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना
हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर
तुमने वृक्ष काटे , जंगल काटे
जिनपे था मैं आश्रित
जब बादल उमड़ा करते थे
उन घने वृक्षों को देख कर
मैं हो जाता था अति हर्षित
अब न पेड़ बचाये तुमने
मैं भी सूखने को आया हूँ
क्या कहूँ मैं अपनी वेदना तुमसे
बेच डाला है तुमने अपना ज़मीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर
मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना
हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर
चारों ओर कंकरीट की इमारतें
न दिखती कही हरियाली है
सारे उपवन काट कर कहते हो
ग्लोबल वार्मिंग आई है
न होती है वर्षा अब उतनी
क्या करोगे उन्नति इतनी????
अब मैं विवश हो गया हूँ
अब मैं हाहाकार मचाऊंगा
और खुद अपनी जगह बनाने
महाप्रलय ले आऊंगा
तुमने अपनी हदें हैं लाँघी
अब मैं अपनी क्षमता तुम्हें दिखाऊंगा
तुम्हारी उन्नति और प्रगति को
अपने में समा ले जाऊंगा
सब तरफ होगा नीर ही नीर
जब न होगा मानव इस धरती पर
न होगी कोई समस्या गंभीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर
मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना
हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर
तुम अब भी न जागे
तो पछताओगे
अपने वंश को आगे क्या दे जाओगे
यही दूषित वायू और प्रदूषण
की समस्या गंभीर ???
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर
मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना
हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर ….
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”
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