Mujhme bhi jeevan hai Hindi poetry to save animals

by | Dec 10, 2019 | Environment, NATURE, save animals | 0 comments

हिंदी कविता जानवरों के प्रति दयालु होने के लिए / जानवरों को बचाने के लिए

मुझमे भी जीवन है

हाँ मैं तुम जैसा नहीं
तो क्या हुआ ?
मुझमे भी जीवन है
मुझे क्यों आहत करते हो ??
 हमें संज्ञा दे कर पशुओं की
खुद पशुओं से कृत्य करते हो

कल जब तुम ले जा रहे थे
मेरी माँ को
मैं फूट फूट कर रोया था
मैं छोटा सा एक बच्चा था
मैंने अपनी माँ को खोया था
मैं लाचार  खड़ा रहा दूसरी ओर
जब तुमने मेरी माँ का खून
अपने हाथों से धोया  था
मुझे हर पल  रहता ये डर
तुम काट खाओगे मुझको भी कल
मैं पल पल मरता रहता हूँ
और अपनी साँसे गिनता हूँ
सोचता हूँ कैसे आता होगा स्वाद तुम्हें
नहीं याद आता होगा क्या ये पाप तुम्हें ???
इतनी निर्ममता से मार कर मुझको
 तुम कैसे  खा सकते हो ???
हमें इतना ज्ञान नहीं
की अच्छा बुरा समझ सके
बिना शिकार किये अपना पेट भर सके
पर तुमको भगवन ने इंसान बनाया
जो दुसरो का मर्म समझ सके
फिर क्यों ये भूल तुम हम पर
इतनी बर्बरता करते हो ???
हमें संज्ञा दे कर पशुओं की
खुद पशुओं से कृत्य करते हो

अपने घरों की चाहत में तुमने
हमारा घर हमारा जंगल छीना
जब बढ़ने लगे हम तुम्हारी
देहलीज़ो को अपना सर छुपाने
और खाना ढूंढने  के लिए
अपने कर्मो को भूल, अपनी दुनिया
हमसे बचाने के लिए
 हमें  मार  लहूलुहान
करते हो
ये दुनिया सिर्फ तुम्हारी नहीं थी
ये दुनिया हमारी भी थी
हमारा शोषण किया तुमने ऐसे
जैसे तुम्हें ईश्वर की कृति
प्यारी ही नहीं थी
हमारा शरीर ,खाल सबका
 सौदा करके अपनी जेबें भरते हो
सदियाँ  हो गई पिंजड़ों में कैद हुए
न जाने कब खुली हवा में
सांस ले पाएंगे
आज़ादी की तो बात ही छोड़ो
कब हम  इन जंजीरों से मुक्त हो पाएंगे
हम तुम्हारे मनोरंजन की कोई वस्तु नहीं
क्या तुम  इन पिंजरों में होने की
कल्पना भी कर सकते हो ???
हमें संज्ञा दे कर पशुओं की
खुद पशुओं से कृत्य करते हो

जब तक तुम पर कोई कष्ट नहीं आता
तुम हमें  पुचकारते नहीं
शनि, राहु, केतु न होते
तो तुम हमें  पूछने आते नहीं
कभी काले श्वान को रोटी
तो कभी चितकबरी गाये
ढूँढा करते हो
अपना मतलब सिद्ध करने के लिए
हमें तो छोड़ों
तुम दिन देख कर भगवन को भी
झांसा देते हो
मंदिर पूजा पाठ के बाद
तुम हमें खाने फिर टूट पड़ते हो
इतने स्वार्थी तुम कैसे हो सकते हो??
हमें संज्ञा दे कर पशुओं की
खुद पशुओं से कृत्य करते हो

हैं कुछ लोग ऐसे भी
जो हमारा दर्द समझते हैं
हमें भी जीने का हक़ है
ऐसा वो समझते हैं
हमारी  सेवा में वो
दिन रात समर्पित रहते हैं
हम पशुओं में भी भावना है
हम निस्वार्थ प्रेम को समझते  हैं
हमारा जीवन कष्टपूर्ण ही सही
हम बेवजह किसी को मारा नहीं करते
जब तक हमारी रक्षा की न हो बात
हम अपने सुखों  के लिए किसी
की हत्या नहीं करते
सोचता हूँ के
अगर हम मानव से परिपूर्ण और सक्षम होते
तो क्या हम ऐसा कर पाते ??
लेकिन फिर सोचता हूँ
के इतने अत्याचार  तो
तुम भी न सहन कर पाते
फिर क्यों तुम हमारे आंसुओं को अनदेखा कर देते  हो???
हमें संज्ञा दे कर पशुओं की
खुद पशुओं से कृत्य करते हो

 मैं कभी  मांसाहार करती थी
पर जब से इनकी वेदना को समझा
मैं अपने कृत्य पर  पछताती हूँ
अपनी कर्मों की क्षमा कैसे मांगू
इसलिए अब सबकी अंतरात्मा
अपनी कविता से जगाती हूँ
अगर हो सके तो इनकी करुणा
समझना
और फिर स्वार्थ और स्वाद दोनों के लिए
इनकी हत्या मत करना
वरना पशु ये कहता रहेगा
हाँ मैं तुम जैसा नहीं
तो क्या हुआ ?
मुझमे भी जीवन है
मुझे क्यों आहत करते हो ??
 हमें संज्ञा दे कर पशुओं की
खुद पशुओं से कृत्य करते हो

हमें संज्ञा दे कर पशुओं की
खुद पशुओं से कृत्य करते हो

अर्चना की रचना  “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास” 

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