“सहूलियत” हिंदी अध्यात्मिक कविता
दुःख दर्द सब सह लूँगा , बस उसे सहने की ताक़त भी दे,
मैं हर हाल में रह लूँगा,
बस थोड़ी सहूलियत की इज़ाज़त भी दे l
जाने तू कब कोई ख्वाब हकीक़त से जोड़ दे,
या किसी पुराने रिश्ते से एक पल में बिछोड़ दे,
भला इसमें मेरा क्या भला है,
बस इसे समझने की काबिलयत भी दे l
मैं नेकी कर दरिया में बहा आऊँ,
और सब लुटा कर भी कुछ न चाहूँ ,
ऐसा दरिया – दिल मेरे कूचे से भी गुज़रे
इतनी नज़र ए इनायत भी दे l
मैं शौक से कबूल कर लूँगा हर फरमान तेरा
और मूँह से उफ़्फ़ भी न निकलेगा
ब शर्त ए सारथी बन कर
तू मुझे “कृष्णा” सी हिदायत भी दे ……
अर्चना की रचना ” सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास “
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