सच्चे प्यार पर आधारित हिंदी कविता
वो पुराना इश्क़
वो इश्क अब कहाँ मिलता है
जो पहले हुआ करता था
कोई मिले न मिले
उससे रूह का रिश्ता
हुआ करता था
आज तो एक दँजाहीसी सी है,
जब तक तू मेरी तब तक मैं तेरा
शर्तों पे चलने की रिवायत
सी है ,
मौसम भी करवट लेने से पहले
कुछ इशारा देता है
पर वो यूं बदला जैसे वो कभी
हमारा न हुआ करता था
मोहब्बत में नफरत की
मिलावट कहा होती है
जो एक बार हो जाये तो
आखिरी सांसो तक अदा होती है
मुझे बेवफा करार कर बखूबी
पीछा छुड़ाया उसने
उस से पहले मेरे दामन में
कोई दाग न हुआ करता था
लोग इश्क़ में अंधे हो जाते हैं
बिना सोचे समझे
इस आग में कूद जाते हैं
दिमाग जो लगाते तो
तुमसे इश्क़ कहाँ निभा पाते
पर वो बेचारा तो तुम्हारी
गिरफ्फत में हुआ करता था
बहुत प्यार लुटाया उसने
जब तक हम उसकी नज़र
में थे
नज़र बदलते ही इश्क़ का
नया रंग सामने आया
जब उसने सारे एहसासों का मोल
कागज़ से लगाया
जब अपनाया था उसको हमने,
वो गुमनाम हुआ करता था
वो वख्त जो किसी पर
लुटा दिया
कोई उसका हिसाब
लगा नहीं पाता
तक़दीर के लिखे को
कोई मिटा नहीं पाता
जी रहे अब एक दूसरे के बिन
कभी ख्वाबों में भी इस बात का जिक्र न हुआ करता था
कौन कहता है इश्क़ और दोस्ती में
शुक्रिया और माफ़ी की जगह नहीं होती
रिश्ता बनाये रखने को ये
तकल्लुफ़ भी ज़रूरी है
चोट छोटी हो या बड़ी वख्त पर
मरहम ज़रूरी है
पर वो जब भी मिला उसको कोई
पछतावा न हुआ करता था
मिला था जो प्यार तुमसे
उसे आज भी ढूंढता हूँ
जिस मोड़ पर तुम मिले थे
वही आज भी खड़ा हूँ
हां बस आज तुम्हारा इंतज़ार
नहीं मुझको
मेरी राहें तुमसे अलग हैं
ये समझ चूका हूँ
दूरियां अब दिलो में हैं
जो की कभी दो शहरों का फासला ,
फासला न हुआ करता था
अगर मेरी जगह तुम होते
तो कब के बिखर गए होते
मगर मैं आज भी
तुम्हारी खैरियत रखता हूँ
तुमसे शिकायतें करता हूँ
तुमसे आज भी उस बात पे लड़ता हूँ
हमारा एक दूसरे के बिना गुज़ारा
भी कहाँ हुआ करता था
संभल के चलना इश्क़ की राहों में
कोई मुलाकात आखिरी भी
हो सकती है
जहा झुकना हो झुक जाना
जो रूठा हो उसे मना लाना
ऐसा न हो कोई चला जाये
और फिर मुड़ के न देखे
जैसे कभी उस से कोई वास्ता न हुआ करता था
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”
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