दुर्गा अष्टमी पर हिंदी कविता “वो लड़कियाँ “
वो लड़कियाँ जो दिल खोल कर बात करती हैं,
अपनी ज़िन्दगी का सही-गलत खुद चुनती हैं |
तुम उनका चरित्र उनकी बेबाक़ी से तौल देते हो ,
बहुत कुछ अच्छा -बुरा उनके दामन से जोड़ देते हो |
जिसमें न ही कोई सच्चाई सिर्फ एक मसाला है ,
उनकी बेबाक़ी का तुमने अनूठा रंग निकाला है |
तुम मिलना भी चाहोगे उनसे , बातें करना चाहोगे,
पर भरी महफ़िल में उनसे नज़र चुराओगे |
क्योंकि ऐसी स्वतंत्र और मज़बूत महिलाएं तो
सिर्फ टीवी या अख़बारों में अच्छी लगती हैं,
तुम्हारे घर की बहु-बेटियां तो इंस्टा पर भी नहीं दिखती हैं |
मैं बेबस और लाचार दिखूं तो ही तुमसे इज़्ज़त पाऊँगी ?
या सिर्फ एक चर्चा बन तुम्हारी महफ़िल का रंग जमाऊँगी ?
मुझे चुनना हो अपना चरित्र तो मैं हर बार दुर्गा बनना चाहूंगी,
पांचाली हो कर भी लाचार रहूँ , उसमें क्या ही सुख पाऊँगी ?
मुझे तुमसे आश्रय न मिले पर सम्मान ज़रूरी है ,
जो मुझे वो न दे सके, उस इंसान से दूरी मंज़ूरी है |
तुम्हारी संगत की चाहत में, मैं खुद को न बदल पाऊँगी,
मुट्ठी भर आसमान मिला है , मैं अकेले ही उसे नाप आऊँगी |
तुम तौलते रहना मेरा चरित्र मेरे मज़बूत इरादों से
मुझे भी कहाँ फर्क पड़ता है , तुम्हारी दोहरी चालों से….
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास “
Es Baar Ki Navratri- Hindi poetry on woman empowerment/Durga Pooja/save girl
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